24 April 2024

WISDOM ------

   लघु कथा ----- एक  पंडित जी  गंगा  में  स्नान  कर  के  निकल  रहे  थे   कि  उनका  स्पर्श  एक  निम्न  जाति  के  व्यक्ति  से  हो  गया  l  स्पर्श  होते  ही   उन्हें  क्रोध  आ  गया   और  वे  उसे  जोर  से  डांटने -डपटने  लगे  l  उनका  क्रोध  इतना  बढ़  गया  कि  उन्होंने  उस  व्यक्ति  को   दो  छड़ियाँ  भी  जमा  दीं  l   फिर  यह  कहते  हुए  दोबारा  स्नान  करने  चले  गए   कि  इस  व्यक्ति  ने  मुझे  अपवित्र  कर  दिया   l  नहाते  समय  उन्होंने  देखा  कि  वह  व्यक्ति  भी   स्नान  कर  रहा  है  l  उसे  स्नान  करते  देख  पंडित जी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ    और  उन्होंने   उससे  पूछा  ---- ' मैं  तो   तुम्हारे  से  स्पर्श  होने  के  कारण  दोबारा  स्नान  करने  गया  ,  लेकिन  तुम  क्यों  नहाने  गए  ? "  वह  व्यक्ति  बोला  --- " पंडित जी  !  मानव  मात्र  तो  एक  समान  हैं  ,  जाति  से  पवित्रता  तय  नहीं  होती  ,  लेकिन  सबसे  अपवित्र  तो  क्रोध  है  l  जब  आपके  क्रोध  ने   मुझे  स्पर्श  किया   तो  उन  नकारात्मक  भावों  से  मुक्त   होने  के  लिए   मुझे  गंगा स्नान  करना  पड़ा  l "   यह  सुनकर  पंडित जी  बहुत  लज्जित  हुए  और  उनका  जाति -अभिमान  दूर  हो  गया  l    

23 April 2024

WISDOM ----

  पुराण  में  एक  रोचक  कथा  है ---- एक  बार  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  और  मरुत  देव   में  विवाद  हुआ  कि   तपस्या  श्रेष्ठ  है  या  सेवा   l  मरुत  देव  का  कहना  था  तपस्या  श्रेष्ठ  है   और   तपस्वियों  में  विश्वामित्र  श्रेष्ठ  हैं  l  वे  तपस्वी  होने  के  साथ  त्यागी  भी  हैं  l  उन्होंने  देवराज  पर  व्यंग  करते  हुए  कहा --- ' आपको  अपने  सिंहासन  का  भय   बना  रहता  है  लेकिन   विश्वामित्र  त्यागी  हैं  , उन्हें  इन्द्रासन  का  कोई  लोभ  नहीं  है  , उन्होंने  बहुत  सिद्धियाँ  अर्जित  की  हैं   और  वे  आत्म कल्याण    के  लिए  तप  कर  रहे  हैं   l  '   इंद्र  ने  कहा --- " सिद्धियाँ  प्राप्त  कर  लेने  के  बाद   यह  आवश्यक  नहीं  कि  व्यक्ति  उनका  उपयोग  लोक कल्याण  के  लिए  करे  l  शक्ति   अर्जित  होने  पर  अहंकार  आ  जाता  है   लेकिन  सेवा  में  अहंकार  का  दोष  नहीं  होता   इसलिए  मैं  सेवा  को  श्रेष्ठ  मानता  हूँ  l  महर्षि  कण्व में  सेवा  भाव  है  , वे   समाज   और  संस्कृति   के  उत्थान  के  लिए  निरंतर  प्रयत्नशील  हैं   इसलिए  मैं  महर्षि  कण्व  को  विश्वामित्र  से  श्रेष्ठ  मानता  हूँ  l '  इसी  विवाद  के  समय  महारानी  शची  आ  गईं   और  यह  तय  हुआ  कि  क्यों  न   कण्व  और  विश्वामित्र  की  परीक्षा  ली  जाये  l  स्वर्गपुरी  में  बात  फ़ैल  गई  कि  देखें  तपस्या  से  प्राप्त  सिद्धि   की  विजय  होती  है  या  सेवा  की  ?    अब  देवराज  किसी  की  परीक्षा  लेने  आ  जाएँ   तो  क्या  होगा  ?    इंद्र  ने  स्वर्ग  की  सबसे  सुन्दर  अप्सरा  मेनका  को  ऋषि  विश्वामित्र  की  तपस्या  भंग  करने  भेजा  l  फिर  क्या  था , रूप  और  सौन्दर्य  के  इंद्रजाल  ने   विश्वामित्र  को  आकाश  से  धरती  पर  ला  दिया  , उन्होंने  अपना  दंड , कमंडलु  एक  ओर  रख  दिया  l  सारी  धरती  पर  कोलाहल  मच  गया  कि  विश्वामित्र   का  तप  भंग  हो  गया  l  तप  के  साथ  उनकी  शांति , उनका  यश , सिद्धि   , वैभव  सब   नष्ट  हो  गया  l  कई  वर्ष  बीत  गए  l  जब  विश्वामित्र  को  होश  आया  तो  पता  चला  कि   उनसे  अपराध  हो  गया  , युगों  की  तपस्या  व्यर्थ  हो  गई  ,  क्रोध  में   उन्होंने  मेनका  को  दंड  देने  का  निश्चय  किया   लेकिन  प्रात: काल  होने  तक  मेनका  अपनी  पुत्री  को  आश्रम  में  छोड़कर  इन्द्रलोक  पहुँच  चुकी  थी  l  रोती -बिलखती , भूख  से  कलपती  अपनी  कन्या  पर  भी  विश्वामित्र  को  दया  नहीं  आई   कि   उसे  उठाकर  दूध  व  जल  की  व्यवस्था  करें  , उन्हें  तो  बस  अपने  आत्म कल्याण  की  चिन्ता  थी   इसलिए  बालिका  को  वहीँ  बिलखता  छोड़कर  वे  पुन: तप  करने  चले  गए   l  दोपहर  के  समय   ऋषि  कण्व  लकड़ियाँ  काटकर  लौट  रहे  थे  , मार्ग  में  विश्वामित्र  का  आश्रम  पड़ता  था  l  बालिका  के  रोने  का  स्वर  सुनकर   उन्होंने  सूने  आश्रम  में  प्रवेश  किया  तो  देखा   अकेली  बालिका  दोनों  हाथों  के   अंगूठे   मुंह  में   चूसती  हुई   अपनी  भूख  मिटाने  का  प्रयत्न  कर  रही  है  l  उसे  देख    स्थिति  का  अनुमान  कर  कण्व   की  आँखें  छलक  उठीं  l  उन्होंने  बालिका  को  उठाया  ,  चूमा , प्यार  किया   और  गले  लगाकर  अपने  आश्रम  की  ओर  चल  पड़े  l  अब  इंद्र  ने  मरुत  से  पूछा  --- " तात  !  बोलो    जिस  व्यक्ति  के  ह्रदय  में   विश्वामित्र  के  प्रति  जो  अबोध  बालिका  को   भूख  से  बिलखती  छोड़  गए ,  कोई  दुर्भाव  नहीं  है   और  अबोध  बालिका  की  सेवा  वे  माता  की  तरह  करने  को  तैयार  हैं  , तो  बोलो  कण्व  श्रेष्ठ  हैं  या  विश्वामित्र  ?   मरुत  कुछ  न  बोल  सके  , उन्होंने  अपना  सिर  झुका  लिया    l  इंद्र  ने  कहा --- 'श्रेष्ठ  तपस्वी  तो  वह  है   जो  अपने  लिए  कुछ  चाहे  बिना   समाज  के  शोषित ,उत्पीड़ित , दलित  और   असहाय  जनों  को   निरंतर  ऊपर  उठाने  के  लिए   परिश्रम  किया  करता  है   l  इस  द्रष्टि ने   महर्षि  कण्व  श्रेष्ठ  हैं  , उनकी  तुलना   विश्वामित्र  से  नहीं  कर  सकते  l  

22 April 2024

WISDOM -----

   लघु -कथा ---- 1 . लोमड़ी  और  खरगोश  पास -पास  रहते  थे  l  खरगोश  घास  चरता  था  और  खेत  को  कोई  नुकसान  नहीं  पहुंचाता  था  l  किसान  भी  उसकी  सज्जनता  से  परिचित  था  , इसलिए  उसे  रहने  के  लिए   एक  कोने  में  जगह  दे  दी  l   एक  दिन   एक    लोमड़ी  उधर  आई   और  खरगोश  से  पूछने  लगी ----" मक्की  पक  रही  है ,   कहो  तो  पेट  भर  लूँ  ? "   खरगोश  ने  कहा --- "  खेत  से  पूछ  लो  l  वह  कहे  , वैसा  करना  l "   लोमड़ी  ने आवाज  बदलकर  खेत  की  ओर  से  कहा  --- " खा  लो  ,  खा  लो  l "  इतने  में   किसान  का  पालतू  कुत्ता  आ  गया  l  वह  सब  देख -सुन  रहा  था  l  उसने  आते  ही  खेत  से  पूछा  --- "  बताओ  तो  इस  धूर्त  लोमड़ी   को  मजा  चखा  दूँ   ? "   फिर  स्वर  बदलकर  कहा  ---- "  धूर्त  लोमड़ी  की  टांग  तोड़  दो  l '  कुत्ते  को  झपटते  देख  लोमड़ी  नौ  -दो -ग्यारह  हो   गई   l  सज्जनता  का  व्यवहार  छद्म युक्त  होने  के  कारण  आकर्षक  तो  लगता  है  , परन्तु  उसकी  पोल   अंतत:  खुल   ही  जाती  है  l  

WISDOM ----

  संसार  में  जिनके  पास  शक्ति , धन -वैभव  सब  कुछ  है  ,  उन्हें  इसका  अहंकार  हो  जाता  है  ,  वे  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगते  हैं  l  अपनी  उपलब्धियों  के  लिए  वे  ईश्वर  के  प्रति  कृतज्ञ  नहीं  होते  l  वे  सोचते  है  कि  जो  हम  हैं  सो  कोई  नहीं ,  इसलिए  ईश्वर  को  धन्यवाद  नहीं  देते  l  यही  कारण  है  कि  वे  भयभीत  और  भीतर  से  अशांत  होते  हैं  l  ईश्वर  ने  हमें  जो  कुछ  भी  दिया  , उसके  लिए  यदि  हम  ईश्वर  को  धन्यवाद  देते  हैं ,  उसके  महत्त्व  को  समझते  हैं  तो  उससे  हमारा  अहंकार   मिटने  लगता  है , जीवन  में  सकारात्मक  परिवर्तन  होने  लगते  हैं   और  जीवन  प्रगति  की  दिशा  में  आगे  बढ़ने  लगता   है   l   एक  कथा  है  ------  एक  नगरसेठ  अपनी  गुत्थियों  के  समाधान   में  सहायता  प्राप्त  करने  के  लिए   मंदिर  में  पहुंचे  l  देवता  को  प्रसन्न  करने  के  लिए   वे  थाल  भरकर  मोती   और  नैवेद्य  लाए  थे  l  मंदिर   छोटा  था  ,  उसमें  एक  भक्त  पहले  से  ही  बैठा  था  l  झरोखे  में  से  झांककर  सेठ  ने  देखा   तो  वह  फटे  कपड़े  पहने  , अस्थि -पंजर   जैसा   कोई  दरिद्र  व्यक्ति  था  , वह  बड़ी  प्रसन्नता  के  साथ  ईश्वर   के  प्रति  अपनी  कृतज्ञता  व्यक्त  कर  रहा  था   और  प्रार्थना  कर  कह  रहा  था --हे  प्रभु ,  आपकी  बड़ी  कृपा  है ,  मैं  सुख  की  नींद  सोता  हूँ  , आपकी  कृपा  से  मेरे  परिवार  का  भरण -पोषण  हो  रहा  है   और  कोई  मुझसे  ईर्ष्या  नहीं  करता  है  l '     उस  भक्त  के  बाहर  निकलने  पर  सेठ  ने  पूजा  तो  की   लेकिन  उसके  मन  में  यह  प्रश्न  उफनता  रहा   कि  मैं  इतने  समय  से  पूजा  कर  रहा  हूँ  , भगवान  को  बहुमूल्य  हार -मोती , फल ,  मिठाई   आदि  सब  कुछ  चढ़ाता  हूँ   पर  मेरे  ईर्ष्यालु  बढ़ते  ही  जा  रहे  हैं  और  मेरा  सुख -चैन  घटता  जा  रहा  है  l   देवता  मेरी  इतनी  उपेक्षा  कर  रहे  हैं  और  इस  दरिद्र  पर  इतना  अनुग्रह  ?   इस  संदेह  को  लेकर  सेठ  प्रधान  पुजारी  के  पास  पहुंचे  l  पुजारी  ने  कहा  --हम  देवता  से  पूछकर  तीन  दिन  में  इसका  उत्तर  देंगे  l  जैसे -तैसे  तीन  दिन  बीते   और  सवेरे  ही  सेठजी  प्रधान  पुजारी  के  पास  जा  पहुंचे  l  पुजारी  ने  देवता  का  अभिमत  सुनाया ---- "  आप  देवता  पर  सेवक  की  तरह   काम  करने  को  दबाव  डालते  हैं   और  दरिद्र  ने   ईश्वर  को  अपना  स्वामी  मानकर   बड़ी  श्रद्धा  से  उन्हें  अपने  ह्रदय  में  स्थान  दिया  हुआ  है  l  इसलिए  ईश्वर  ने   सेवक  वाले  की  अपेक्षा   ह्रदय  में  स्थान  देने  वाले  को  अपना  सच्चा  वरदान  देने  का  निश्चय  किया  है  l '  

20 April 2024

WISDOM -----

   इस  संसार  में  आरम्भ  से  ही  देवता  और  असुरों  में  संघर्ष   चला  आ  रहा  है  l  असुर  भी  सामान्य  मनुष्य  की  तरह  ही  होते  हैं  ,  उनके  कहीं  कोई  सींग , विशेष  आकृति  नहीं  होती  l  वास्तव  में  असुरता  एक  प्रवृत्ति  है   l  कैसे  समझें  की  असुरता  कहाँ  है  ?   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " ज्ञान , शक्ति  और  सामर्थ्य  का  जहाँ  दुरूपयोग   हो  रहा  है  ,  वहीं   असुरता  है  l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- " ज्ञान  का  अर्जन  दुर्लभ  है  , परन्तु  उसका  समुचित  उपयोग    अति  दुर्लभ  है  l  इस  स्रष्टि  में   प्रतिभा  की  , कला  की  , विद्या -ज्ञान -शक्ति  और  सामर्थ्य  की  कोई  कमी  नहीं  है   l  असुरों  से  श्रेष्ठ  तपस्वी  इस  संसार   अन्यत्र   कहीं  नहीं  है   लेकिन  उनका  सारा  ज्ञान ,  उनकी  समूची  सामर्थ्य    उनके  अहंकार  की  तुष्टि   और  भोग -विलास  के  साधन  जुटाने  में  खप  रही  है  l  "  आज  संसार  में   ज्ञान , शक्ति  और  सामर्थ्य  का  ही  दुरूपयोग  हो  रहा  है , सारे  संसार  में  असुरता  का  बोलबाला  है  ,  देवत्व  तो  कहीं  छिप  गया  है   l  अब  असुर  ही  आपस  में  लड़  रहे  हैं  l  असुरों  के  पास  ज्ञान  है , धन संपदा  अथाह  है  लेकिन  दया , करुणा , संवेदना  आदि  सद्गुणों  की  कमी  है   इसलिए  वे  आपस  में  ही  लड़  रहे  हैं  l  आज  संसार  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  ' सद्बुद्धि ' की  है  l  सद्बुद्धि  होगी  तो    लड़ाई -झगड़े , वैर -भाव  सब  समाप्त  हो  जाएंगे  l 

19 April 2024

WISDOM-----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " लोकसेवा  की  सफलता  इस  बात  पर  निर्भर  करती  है  कि   उसके  लोकसेवी  आम  जनता  की  जिन्दगी  से  कितना  जुड़े  हैं  l  गरीब  जनता  से  दूर   ऐशोआराम  में  रहने  पर   उनकी  आँखों  पर  पट्टी  चढ़   जाती    है   और  वे  जनता  की  दुःख -तकलीफों  को  देखना  बंद  कर  देते  हैं  l  फिर  धीरे -धीरे  लोकसेवा   व्यवसाय  बन  जाती  है   और   लोकतंत्र  भ्रष्टतंत्र  बन  जाता  है  l  "                               यदि  कोई  सच्चा  लोकसेवी  होगा   तो  उसका  आत्मबल  इतना  अधिक  होगा  कि  वह  रावण  की  सोने  की  लंका  को  भी  ढहा  दे  l  इस  सत्य  को  बताने  वाली   एक    कथा  है -----  अयोध्या  के  प्राचीन  राजा  और  भगवान  श्रीराम  के  पूर्वज  महाराज  चक्कवेण   की  कथा  है  l   राजा  चक्कवेण  बहुत  प्रतापी  राजा  थे  , उनके  राज्य  में  प्रजा  बहुत  सुखी  - संपन्न  थी  किन्तु  राजा  स्वयं   बहुत  सादगी  से  एक  झोंपड़ी  में  रहते  थे   और  राजकाज  से  जो  समय  मिलता  उसमें   वे  अपने  जीविकोपार्जन   के  लिए  खेती  कर  लेते  l  उनकी  धर्मपत्नी  भी  बहुत  सादगी  से  रहती  थीं  l   जब  कभी  वे  किसी  काम  से  बाहर  जातीं  तो  नगर  के  धनाढ्य  परिवारों  की  महिलाएं  उन्हें  टोकती  कि  आपके  शरीर  पर  कोई  आभूषण  नहीं  है  ,  यदि  महाराज  अपनी  मर्यादा  में   ऐसा  नहीं  करते  तो  आप  कहें  तो   हम  आपके  लिए  आभूषण  बनवा  दें  l  नगर  की  महिलाओं  के  बार -बार  कहने  के  कारण  महारानी  ने   आभूषणों  की  बात  महाराज  चक्कवेण  से  कह  दी  l   राजा  यह  सुनकर  चिंता  में  पड़  गए  , उन्होंने  कहा --- महारानी  आभूषणों  के  लायक  तो  हमारी  आर्थिक  स्थिति  है  नहीं  ,  फिर  भी  तुमने  जीवन  में  पहली  बार  मुझसे  कुछ  माँगा  है  , तो  कुछ  तो  करना  होगा  l  राजा  ने  अपने  प्रमुख  मंत्री  को  बुलाया  और  कहा --- " हम  अपने  सुख  के  लिए   अपने  राज्य  की  जनता  से  अधिक  कर   नहीं  वसूल  सकते  l  तुम  ऐसा  करो  कि  लंका  के  राजा  रावण  से   कर  वसूल  करो  l  उसने  स्वर्ण  की  बहुत  जमाखोरी  की  है  , इसलिए  तुम  उसी  से  स्वर्ण  ले  आओ  l "   मंत्री  राजा  की  बात  मानकर  लंका  गया   और  वहां  जाकर  उसने  रावण  से  कहा ---- " हमारे  महाराज  चक्कवेण  ने   तुमसे  कर  लेने  को  भेजा  है  l "  दम्भी  रावण  यह  सुनकर  बहुत  हँसा  और  बोला --- " तुम्हारे  भिखारी  राजा  की  यह  मजाल  की  रावण  से  कर  वसूल  करने  की  सोचे  l "  रावण  की  बात  सुनकर  मंत्री  ने  कहा --- "  तुम  हमारे  महाराज  के  प्रभाव  को  जानते  नहीं  हो  ,  हम  तुम्हे  कुछ  नमूना  दिखाते  हैं  ,  देखकर  हिल  जाओगे  l  फिर  मंत्री  बोला --- " यदि  हमारे  महाराज  चक्कवेण  सच्चे  लोकसेवी  और  तपस्वी  हैं   तो  लंका  का   उत्तरी  और  दक्षिणी  हिस्सा  ध्वस्त  हो  जाये  l "  मंत्री  के  ऐसा  कहते  ही  सोने  की  लंका  ढहने  लगी  l  न  कोई  सेना , न  मन्त्र  शक्ति  , सिर्फ  सच्ची  लोकसेवा  के  साथ  तप  और  त्याग  का  ऐसा  प्रभाव   !  रावण  यह  देखकर  घबरा  गया  , उसे  आश्चर्य  भी  हुआ  l  उसने  बहुत  सारा  स्वर्ण  देकर  मंत्री  को  विदा  किया  l  मंत्री  ने  वापस  आकर  महाराज  व  महारानी  को    यह  घटना  सुना  दी  l  यह  सुनकर  महाराज   चक्कवेण  ने  महारानी  से  कहा --- "  महारानी  सच  आपके  सामने  है  , अब  आप  चाहें  तो  आभूषण  पहन  लें  ,  लेकिन  आपके  आभूषण  पहनते  ही   मेरी  सच्ची  लोकसेवा  और  तपस्या  का   यह  प्रभाव  समाप्त  हो  जायेगा  l  "  महारानी  को  यथार्थ  समझ  में  आ  गया  ,  उन्होंने  आभूषण  पहनने  से  स्पष्ट  इनकार  कर  दिया  l  इस  पर  महाराज  चक्कवेण   ने  कहा --- "  महारानी  !  तप -त्याग , सादगी  , सदाचार  ही  लोकसेवी  की  सच्ची  संपत्ति  है  l "  

18 April 2024

WISDOM ------

  समय  परिवर्तनशील  है , वक्त  के  साथ  सब  कुछ  बदल  जाता  है  l  एक  समय  था  जब   विभिन्न  सत्ताधारियों  के  अहंकार  और  महत्वाकांक्षा  के  कारण  बड़े -बड़े  युद्ध  होते  थे  जैसे  रावण   के  अहंकार  के  कारण  ही  राम -रावण  युद्ध   और  दुर्योधन  के  अहंकार  के  कारण  महाभारत  हुआ  l  इस  युग  में  भी  सिकंदर , हिटलर  आदि  के  अहंकार  ने  ही  संसार  में  तबाही  मचाई  l  लेकिन   वर्तमान  के  युद्धों  में  अहंकार , महत्वाकांक्षा  जैसी  कोई  बात  स्पष्ट  नहीं  है  l  अहंकार   जैसे  दुर्गुण  को  भी  ' धन '  ने  खरीद  लिया  l  यदि  हम  सामान्य  द्रष्टि  से  भी  देखें  तो  इन  युद्धों  में   धन -वैभव  संपन्न  लोगों  का , राजा , बड़े  अधिकारी  , शक्ति   सम्पन्न  , समर्थ  लोगों  का  कोई  नुकसान  नहीं  होता  , वे  सब  सुख -वैभव  और  आराम  की  जिन्दगी  जीते  हैं  l  निर्दोष  प्रजा , कमजोर   लोग  ही  मारे  जाते  हैं  ,  मानों  वे  ही  बड़ी  हुई  जनसँख्या   और  धरती  पर  बोझ  हैं  l  वक्त  के  साथ  युद्ध  के  मायने  ही  बदल  गए  l  मारक  हथियार , बम  आदि  भी  बोलने  लगे  हैं  कि  जल्दी  इस्तेमाल  करो   ताकि  और  नए  , पहले  से  भी  घातक  बने   जिससे  ' फालतू ' जनसँख्या   को  देख  लें  l  इस  तरह  के  युद्ध  एक  छिपी  हुई  चाहत  को  दिखाते  हैं  कि  यह  धरती  केवल  धन  और  शक्ति , वैभव  संपन्न  लोगों  के  लिए  है   यहाँ  प्रकृति , पर्यावरण , छोटे -मोटे  प्राणी   किसी  की  कोई  जरुरत  नहीं  है  , कृत्रिम  से  काम  चलेगा  l  यह  सत्य  है  कि  ' धन  से  व्यक्ति  सब  कुछ  खरीद  सकता  है  l '  लेकिन  धन  से   उस  अज्ञात  शक्ति  , परम  पिता  परमेश्वर  को  भी  कोई  खरीद  सकता  है  क्या  ?   इसका  उत्तर  ' वक्त ' के  हाथ  में  है  l